हिन्दू पंचांग के अनुसार 14 मई 2021 को वैशाख मास की शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया है. भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था. परशुरामजी का वर्णन रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण में भी आता है. मान्यता है कि भारत के अधिकांश ग्राम परशुराम जी ने ही बसाए थे.14 मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया की तिथि पर पूजा का मुहूर्त सुबह 05 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 18 मिनट तक बना हुआ है.
गोवा और केरल मे परशुराम जी की विशेष पूजा की जाती है
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेल दिया. इससे नई भूमि का निर्माण हुआ. इसी कारण कोंकण, गोवा और केरल मे भगवान परशुराम की विशेष पूजा की जाती है. उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है.
परशुराम जी पशु-पक्षियों तक भाषा समझते थे
परशुराम जी प्रकृति प्रेमी और सरंक्षक थे. वे जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाए रखना था. परशुराम जी मानना था कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे. परशुराम जी को भार्गव के नाम से भी जाना जाता है. परशुराम जी पशु-पक्षियों की भाषा को समझते थे और उनसे बात कर सकते थे. कहा जाता है कि कई खूंखार जानवर भी उनके छूने मात्र से उनके मित्र बन जाते थे. परशुराम जी मेधावी थे, उन्होंने बचपन में कई विद्याओं को सीख लिया था.
भगवान शिव के परम भक्त थे
परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कई अस्त्र शस्त्र प्रदान किया. भगवान शिव ने अपना परशु परशुराम को प्रदान किया था. यह अस्त्र परशुराम को बहुत प्रिय था. इस अस्त्र को वे हमेशा अपने साथ रखते थे. इसी कारण इन्हें परशुराम कहा गया.